भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885 ई.)
- एलन ऑक्टोवियन ह्युम नामक एक अवकाश प्राप्त ब्रिटिश अधिकारी ने भारतीय नेताओं के सहयोग से 28 दिसंबर, 1885 को मुंबई मेँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की।
- मुंबई मेँ आयोजित कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी ने की। इस अधिवेशन मेँ मात्र 72 प्रतिनिधियोँ ने भाग लिया।
- प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अपना सुरक्षा कवच समझकर सहयोग दिया, किन्तु बाद जब कांग्रेस ने जब वैधानिक सुधारों की मांग रखी तो अंग्रेजों का कांग्रेस से मोह भंग हो गया।
- 1885 मेँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही एक अखिल भारतीय राजनीतिक मंच का जन्म का हुआ।
- इसी के साथ विदेशी शासन से भारत की स्वतंत्रता का संघर्ष एक संगठित के रुप से प्रारंभ हुआ।
- कांग्रेस के जन्म के साथ ही भारतीय इतिहास मेँ एक नया युग आरंभ हुआ। छोटे-छोटे विद्रोही दलों तथा स्थानीय दलों आदि सभी ने अपने को कांग्रेस मेँ विलीन कर लिया।
- कांग्रेस ने आरंभ से ही एक पार्टी नहीँ वरन् एक आंदोलन का काम किया। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नाम से जाना जाता है।
बंगाल विभाजन एवं स्वदेशी आंदोलन (1905 ई. से 1906 ई.)
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही संपूर्ण भारत के लोग ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक राष्ट्रीय मुख्यधारा मेँ शामिल होते जा रहै थे। बंगाल तब भारतीय राष्ट्रवाद का प्रधान केंद्र था।
- तत्कालिक बंगाल मेँ आधुनिक बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश आते थे। लार्ड कर्जन ने प्रशासनिक सुविधा का बहाना बनाकर बंगाल को दो भागोँ मेँ बांट दिया।
- बंगाल विभाजन की सर्वप्रथम घोषणा 3 दिसंबर 1903 को की गई। यह 16 अक्टूबर 1905 को लागू हुआ। राष्ट्रीय नेताओं ने विभाजन को भारतीय राष्ट्रवाद के लिए एक चुनौती समझा।
- बंगाल के नेताओं ने इसे क्षेत्रीय और धार्मिक आधार पर बांटने का प्रयास माना। अतः इस विभाजन का व्यापक विरोध हुआ तथा 16 अक्टूबर को पूरे देश मेँ शोक दिवस के रुप मेँ मनाया गया।
- हिंदू मुसलमानोँ ने अपनी एकता प्रदर्शित करते हुए एक बहुत ही तीव्र आंदोलन 7 अगस्त 1905 से चलाया।
- स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन की उत्पत्ति बंगाल विभाग विभाजन विरोधी आंदोलन के रुप मेँ हुई।
- इसके अंतर्गत अनेक स्थानोँ पर विदेशी कपड़ोँ की होली जलाई गई और विदेशी कपड़े बेचने वाली दुकानोँ पर धरने दिए गए।
- इस प्रकार बंगाल के नेताओं ने बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन को स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के रुप मेँ परिवर्तित कर इसे राष्ट्रीय स्तर पर व्यापकता प्रदान की।
उग्र और क्रांतिकारी आंदोलन (1905 ई. से 1914 ई.)
- बंग बंग विरोधी आंदोलन का नेतृत्व तिलक बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष जैसे नेताओं के हाथों मेँ आना ही राष्ट्रवादियोँ के उत्कर्ष का प्रतीक था। सरकारी दमन और जनता को कुशल नेतृत्व देने मेँ नेताओं की असफलता के कारण उपजी कुंठा ने क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म दिया।
- क्रांतिकारी युवकों अनेक गुप्त संगठन, जैसे-अनुशीलन समिति, अभिनव भारत, मित्र मेला, आर्य बांधव समाज आदि बनाये।
- बंगाल, मद्रास, महाराष्ट्र मेँ ही नहीँ वरन कनाडा, अमेरिका, जर्मनी, सिंगापुर आदि देशोँ मेँ भी अनेक क्रांतिकारी दल स्थापित हो गए।
- गदर पार्टी भी एक ऐसा ही दल था जिसकी स्थापना सान फ्रांसिस्को मेँ लाला हरदयाल सिंह और भाई परमानंद आज क्रांतिकारियों ने 1913 मेँ की थी।
- यद्यपि गदर पार्टी का यह अभियान असफल रहा, फिर भी उसने अमेरिका मेँ भारतीय स्वाधीनता के लिए प्रचार कार्य जारी रखा।
होमरुल लीग आंदोलन (1915 ई. से 1916 ई.)
- प्रथम विश्व युद्ध के आरंभ होने पर भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने सरकार के युद्ध प्रयास मेँ सहयोग का निश्चय किया।
- इसके लिए एक वास्तविक राजनीतिक जन आंदोलन की आवश्यकता थी। लेकिन ऐसा कोई जन-आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व मेँ संभव नहीँ था, क्योंकि यह नरमपंथियोँ के नेतृत्व मेँ एक निष्क्रिय और जड़ संगठन बन चुकी थी। इसलिए 1915-1916 मेँ दो होमरूल लीगों की स्थापना हुई।
- भारतीय होम रुल लीग का गठन आयरलैंड के होमरुल लीग के नमूने पर किया गया, जो तत्कालीन परिस्थितियों में तेजी से उभरती हुई प्रतिक्रियात्मक राजनीति के नए स्वरुप का प्रतिनिधित्व करता था। एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक इस नए स्वरुप के नेतृत्वकर्ता थे।
- होमरुल आंदोलन के दौरान तिलक ने अपना प्रसिद्ध नारा होमरुल या स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैँ इसे लेकर रहूँगा दिया था।
- 1917 का वर्ष होमरुल के इतिहास मेँ एक मोड़ बिंदु था। जून मेँ एनी बेसेंट तथा उसके सहयोगियोँ को गिरफ्तार कर लेने के पश्चात आंदोलन अपने चरम पर था।
- सितंबर 1917 मेँ भारत सचिव मांटेग्यू की घोषणा, जिस मेँ होमरुल का समर्थन किया गया था, ने इस आंदोलन मेँ एक और निर्णायक मोड़ ला दिया।
- लीग ने अपने उद्देश्योँ की सफलता के लिए एक कोष बनाया तथा धन एकत्रित किया, सामाजिक कार्यो का आयोजन किया तथा स्थानीय प्रशासन के कार्योँ मेँ भागीदारी भी निभाई।
- वर्ष 1914 में तिलक, जो मांडले जेल से लौटने के बाद समझौतावादी हो गए थे, तथा एनी बेसेंट ने मिलकर कांग्रेस के दोनो गुटों को नजदीक लाने का प्रयास किया। देश मेँ बढ़ रही राष्ट्रवादी भावना और राष्ट्रीय एकता की आकांक्षा के कारण 1916 मेँ कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन मेँ ऐतिहासिक महत्व की दो घटनाएँ हुई।
- पहली यह कि कांग्रेस के दोनो धड़े फिर से एक हो गए। इस अधिवेशन की दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि यह थी कि अपने पुराने मतभेद भुलाकर कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने सरकार के समक्ष एकता प्रदर्शित करते हुए साझी राजनीतिक मांगे रखी।
रौलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड (1917 ई. से 1919 ई.)
- प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर, जब भारतीय जनता संवैधानिक सुधारोँ की उम्मीद कर रही थी तो ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी रौलेट एक्ट को जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया।
- रौलेट एक्ट के द्वारा सरकार को यह अधिकार प्राप्त हुआ कि, वह किसी भी भारतीय पर अदालत मेँ बिना मुकदमा चलाए और दंड दिए बिना ही जेल मेँ बंद कर सके।
- 1919 मेँ रौलेट एक्ट के विरोध मेँ गांधी जी ने पहली बार एक अखिल भारतीय सत्याग्रह आंदोलन का आरंभ किया।
- सरकार इस जन आंदोलन को कुचल देने पर उतारु थी उसने निहत्थे प्रदर्शनकारियों को ऐसे कुचलने का प्रयास किया, जिसने दमन के इतिहास मेँ नये अध्याय जोड़े हैं। दमनात्मक नीतियों तथा डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल जैसे लोकप्रिय नेताओं की गिरफ़्तारी के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ मेँ एक सभा का आयोजन किया गया।
- जनरल डायर ने सभा के आयोजन को सरकारी आदेशोँ की अवहेलना माना तथा सभा स्थल को सशक्त सैनिको के साथ घेर लिया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के शांतिपूर्ण ढंग से चल रही सभा पर गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया।
- इस घटना मेँ एक हजार से अधिक लोग मारे गए जिसमेँ युवा, महिलाएँ, बूढ़े, बच्चे सभी शामिल थे। यह घटना आधुनिक भारतीय इतिहास मेँ जलियावाला कांड हत्या कांड के नाम से प्रसिद्द है।
- इस घटना के विरोध मेँ रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई नाइटहुड की उपाधि वापस कर दी तथा सर शंकरन नायर ने गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद से त्याग पत्र दे दिया।
- प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर भारतीय मुसलमान तुर्की के प्रति होने वाले व्यवहार से क्षुब्ध थे। युद्ध के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉयड जॉर्ज ने दो आश्वासन दिए थे – 1. युद्धोपरांत तुर्की को आत्मनिर्णय का अधिकार होगा, 2. वहां के खलीफा की स्थिति के बारे मेँ ब्रिटेन कोई हस्तक्षेप नहीँ करेगा। युद्ध के पश्चात ब्रिटिश सरकार इन वादों से मुकर गई।
- ऐसी स्थिति मेँ भारतीय मुसलमानोँ का असंतोष अपने चरम पर था। महात्मा गांधी के आहवान पर हिंदुओं ने भी मुसलमानोँ का साथ दिया। 1919 में डॉ. अंसारी के नेतृत्व मेँ एक शिष्टमंडल वायसराय से मिलने भेजा गया, परंतु इसका कोई परिणाम नहीँ निकला।
- मई, 1920 मेँ अखिल भारतीय खिलाफत समिति की स्थापना की गई। इस समिति ने अपने कार्यक्रम मेँ सरकार के विरुद्ध असहयोग की नीति अपनाई।
- दिसंबर, 1920 मेँ कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन मेँ विजय राघवाचारी की अध्यक्षता मेँ स्वराज के साथ खिलाफत का प्रश्न भी जोड़ दिया गया।
- प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् आत्मनिर्णय की भावना को बल मिला इसके साथ ही रौलेट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड, पंजाब मेँ मार्शल ला तथा खिलाफत के विवाद आदि घटनाओं से अंग्रेजों के प्रति भारतीय दृष्टिकोण मेँ व्यापक परिवर्तन आया।
- जनता इन घटनाओं के लिए सरकार से खेद प्रकट करने की अपेक्षा कर रही थी। इसके विपरीत परिस्थितियोँ मेँ आंदोलन के एक और चक्र के प्रारंभ के लिए वह तैयार थी।
- 1920 मेँ नागपुर मेँ आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन, जिसकी अध्यक्षता विजय राघवाचारी कर रहै थे, मेँ असहयोग आंदोलन का अनुमोदन कर दिया गया।
- सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए दमनात्मक नीति का सहारा लिया आंदोलन के स्वरुप मेँ स्थान परिवर्तन के साथ-साथ भिन्नता आई।
- 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा नामक गाँव मेँ तीन हजार किसानो के एक कांग्रेसी जुलूस पर पुलिस ने गोली चलाई। किसानो की खुद भीड़ ने थाने पर हमला करके थाने मेँ आग लगा दी। जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए।
- गांधीजी चूँकि हिंसा मेँ विश्वास नहीँ करते थे, इसलिए उनहोने 12 फरवरी 1922 को बारदोली मेँ हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक मेँ असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय किया।
- 1919 के अधिनियम मेँ इस बात की व्यवस्था की गई थी कि दास वर्षों के पश्चात मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों की समीक्षा तथा उसमे परिवर्तन की संभावनाओं की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जाएगा। इस प्रावधान के तहत 1929 मेँ एक आयोग की नियुक्ति की जानी थी।
- तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने निर्धारित समय से दो वर्ष पूर्व 8 नवंबर 1927 को इंडियन इंस्टीट्यूट आयोग की नियुक्ति कर दी। सात सदस्यीय आयोग के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे, जिनके नाम पर यह साइमन आयोग के नाम से विख्यात हुआ।
- कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन मेँ इस आयोग का बहिष्कार का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया।
- 3 फरवरी 1928 को समय साइमन आयोग भारत आया। साइमन आयोग के भारत आने पर देश के सभी नगरों में हड़तालों एवं जुलूसों का आयोजन किया गया।
- जनता के विरोध को कुचलने के लिए सरकार ने निर्मम दमन तथा पुलिस कार्यवाहियों का सहारा लिया।
- साइमन आयोग की नियुक्ति और उसके विरोध के पश्चात भारत सचिव ने भारतीयोँ की क्षमता पर प्रश्नचिंह लगाते हुए उन्हें अपने लिए एक सर्वमांय संविधान बनाने की चुनौती दी।
- डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी की अध्यक्षता मेँ एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन 19 मई, 1926 को किया गया। इस सम्मेलन के अंत मेँ मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता मेँ एक समिति गठित की गई।
- इस समिति 10 अगस्त, 1928 को लखनऊ मेँ हुए एक सर्वदलीय सम्मेलन मेँ अपने, संविधान का प्रारुप पेश किया, जिसे नेहरु रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है।
- रिपोर्ट मेँ भारत को डोमेनियन राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पर बहुमत था लेकिन राष्ट्रवादियोँ के एक वर्ग को इस पर आपत्ति थी। वह डोमेनियन राज्य के स्थान पर पूर्ण स्वतंत्रता का समर्थन कर रहे थे।
- लखनऊ मेँ डाक्टर अंसारी की अध्यक्षता मेँ पुनः सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमेँ ‘नेहरु रिपोर्ट’ को स्वीकार कर लिया गया।
- फ़रवरी 1930 मेँ साबरमती आश्रम मेँ कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक मेँ सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने की संपूर्ण शक्ति महात्मा गांधी के हाथ मेँ सौंप दी गई।
- गांधीजी ने 31 जनवरी, 1930 को लार्ड इरविन के समक्ष अंतिम चेतावनी के रुप मेँ अपनी 11 सूत्री मांग रखी, जिसे अस्वीकार किए जाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की चेतावनी दी।
- लॉर्ड इरविन द्वारा 11 सूत्री मांगोँ को अस्वीकार कर दिया जाने के बाद गांधी जी के समक्ष आंदोलन शुरु करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीँ था।
- गांधी जी ने 12 मार्च, 1930 को अपने चुने हुए 78 स्वयं सेवको के साथ दांडी के लिए यात्रा शुरु की। 24 दिनोँ मेँ दांडी पहुंचकर महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल को नमक कानून का उल्लंघन किया।
- बंगाल मेँ मानसून के आगमन की वजह से नमक बनाना कठिन था, अतः वहां यह आंदोलन चौकीदारी विरोधी तथा यूनियन बोर्ड विरोधी आंदोलन के रुप मेँ चलाया गया।
- महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा मध्य प्रांत मेँ जंगल कानूनो कथा असम मेँ कनिंघम सर्कुलर, जिसके अंतर्गत छात्रों तथा उनके परिजनोँ को चारित्रिक प्रमाणपत्र प्राप्त प्रस्तुत करने होते थे, का विरोध प्रारंभ हुआ।
- निर्ममता पूर्वक दमन के बाद भी यहाँ आंदोलन की तीव्र गति को देख कर लार्ड इरविन ने महात्मा गांधी से समझौते का प्रयास किया। सरकार द्वारा यह आश्वासन दिए जाने पर कि हानि उठाने वालोँ को हर्जाना मिलेगा। 5 मार्च, 1931 को गांधी इरविन समझौते के बाद आंदोलन वापस ले लिया गया।
- 5 मार्च 1931 को गाँधी और इरविन के मध्य एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौता के नाम से जाना जाता है।
- इस समझौता के तहत लार्ड इरविन ने निम्न आश्वासन दिया –
- सभी राजनीतिक बंदियोँ को रिहा किया जाएगा।
- आपातकालीन अध्यादेशों को वापस ले लिया जाएगा।
- आंदोलन के दोरान जब्त की गई संपत्ति उनके स्वामियों को वापस कर दी जाएगी तथा जिनकी संपत्ति नष्ट हो गई हो, उन्हें हर्जाना दिया जाएगा।
- समुद्र तट के निकट रहने वाले लोगोँ को अपने इस्तेमाल के लिए बिना कोई कर दिए नमक एकत्र करने तथा बनाने दिया जाएगा।
- सरकार मादक द्रव्योँ तथा विदेशी वस्तुओं की दुकानोँ पर शांतिपूर्ण धरना देने वालोँ को गिरफ्तार नहीँ करेगी।
- जिन सरकारी कर्मचारियोँ ने आंदोलन के दौरान नौकरी से त्यागपत्र दिया था, उन्हें नौकरी मेँ वापस लेने मेँ सरकार उदार नीति अपनायेगी।
- सितंबर 1932 मेँ गांधी जी और अंबेडकर के बीच एक समझौता हुआ, जिसे पूना समझौता के नाम से जाना जाता है।
- इस समझौते मेँ सभी अल्पसंख्यक समुदायोँ, हरिजनोँ, मुसलमानोँ, सिखों आदि के लिए संघीय विधान परिषद मेँ पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था थी।
- इसके तहत मुसलमान केवल मुसलमानोँ द्वारा, सिख केवल सिक्खों द्वारा तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदाय केवल अपने समुदाय द्वारा चुने जा सकते थे।
- गांधीजी, जो उस समय यरवदा जेल मेँ बंदी थे, ने इसे भारतीय एकता तथा राष्ट्रवाद पर चोट की संज्ञा दी। उन्होंने इस निर्णय को वापस ना लिए जाने की स्थिति मेँ 20 सितंबर, 1932 को आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया।
- इस समझौते के तहत् दलित वर्ग के लिए एक पृथक निर्वाचक मंडल की व्यवस्था वापस ले ली गयी।
- पूना समझौते के सांप्रदायिक निर्णय द्वारा हिंदुओं से हरीजनोँ को पृथक करने के सरकारी प्रयास को विफल कर दिया गया।
1937 का चुनाव और प्रांतो मेँ कांग्रेसी मंत्रिमंडल
- भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रावधानोँ के अनुकूल सरकार ने प्रांतो मेँ फ़रवरी 1931 मेँ चुनाव कराने की घोषणा की।
- फ़रवरी 1937 मेँ संपन्न हुए चुनावों मेँ यह बात निश्चित रुप से सिद्ध हो गई की जनता का एक बड़ा भाग कांग्रेस के साथ है।
- 1937 के चुनावों मेँ कांग्रेस ने अधिकांश प्रांतो मेँ भारी जीत हासिल की। 11 में से 7 प्रांतो मेँ कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा।
- जुलाई 1937 मेँ 11 में से 7 प्रांतो मेँ कांग्रेसी मंत्रिमंडल गठित हुए। बाद मेँ कांग्रेस ने दो प्रांतोँ मेँ साझी सरकारें भी बनाई। केवल बंगाल और पंजाब मेँ गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बन सके।
- 3 सितंबर, 1939 को वायसराय लिनलिथगो ने प्रांतीय मंत्रिमंडलों या राष्ट्रीय भारतीय कांग्रेस के नेताओं की सलाह लिए बिना एकतरफा तौर पर भारत को जर्मनी के साथ ब्रिटेन के युद्ध मेँ झोंक दिया।
- इस एकतरफा निर्णय के विरोध मेँ 29-30 अक्टूबर, 1939 को प्रांतो के कांग्रेस मंत्रिमंडल ने अपने 28 महीने के शासन के पश्चात त्याग पत्र दे दिया।
- युद्ध में भारतीयोँ का सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से 8 अगस्त, 1940 को वायसरॉय लिनलिथगो ने एक घोषणा की, जिसे अगस्त प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है
- वायसराय के प्रस्ताव मेँ निन्नलिखित बातेँ कही गई थी –
- वायसरॉय की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया जाएगा;
- वायसरॉय द्वारा भारतीय राज्यों, भारत के राष्ट्रीय जीवन से संबंधित अन्य हितों के प्रतिनिधियों की एकजुट परामर्श समिति की स्थापना की जाएगी;
- भारत के लिए नए संविधान का निर्माण मुख्यत: भारतीयोँ का उत्तरदायित्व होगा। युद्धोपरांत भारत के लिए नवीन संविधान निर्माण हेतु राष्ट्रीय जीवन से सम्बद्ध व्यक्तियों के एक निकाय का गठन किया जाएगा;
- युद्ध समाप्ति के एक वर्ष के भीतर औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना करना ब्रिटिश सरकार की घोषित नीति है;
- अल्पसंख्यको को पूर्ण महत्व प्रदान करने का आश्वासन दिया गया।
- यद्यपि यह घोषणा एक महत्वपूर्ण प्रगति थी, क्योंकि इसमेँ कहा गया था कि, भारत का संविधान बनाना भारतीयों का अपना अधिकार है, और इसमेँ स्पष्ट प्रादेशिक स्वशासन की प्रतिज्ञा की गई थी।
- 1941 मेँ सुदूर पूर्व मेँ जापान द्वारा ब्रिटेन की पराजय तथा मार्च 1942 मेँ जापान की भारतीय सीमा पर दस्तक, इन दो घटनाओं से ब्रिटिश युद्धकालीन मंत्रिमंडल के रुख मेँ नरमी आ गई।
- भारत मेँ संवैधानिक प्रतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से ब्रिटिश हाऊस ऑफ कॉमंस के नेता तथा युद्धकालीन मंत्रिमंडल के एक सदस्य स्टेफर्ड क्रिप्स को एक घोषणा के मशविरा के साथ भारत भेजा गया।
- मार्च 1948 मेँ यह मशविरा कार्यकारी परिषद् तथा भारतीय राजनेताओं के सम्मुख रखा गया।
- लगभग सभी पार्टियों तथा वर्गो के असंतोष को देख यह घोषणा केवल सभी भारतीयोँ की युद्ध मेँ सहायता प्राप्त करने का एक उपाय मात्र था। इसमेँ भारतीय समस्या के समाधान के लिए कोई विशेष प्रयास नहीँ किया गया था।
- 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने वर्धा मेँ एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें अंग्रेजो को भारत से चले जाने के लिए कहा गया था, तथा यह कहा गया कि यदि यह अपील स्वीकृत नहीँ होती है तो कांग्रेस एक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने के लिए बाध्य हो जाएगी।
- पूरे देश मेँ कारखानो, स्कूल और कॉलेजों मेँ हड़तालें और कामबंदी हुई, जिन पर लाठीचार्ज और गोलियां चलाई गयीं।
- बार बार की गोलीबारी और दमन से क्रुद्ध होकर जनता ने अनेक जगहोँ पर हिंसक कार्यवाहियों भी की। जनता ने पुलिस थानोँ, डाकखानों, रेलवे स्टेशनों आदि ब्रिटिश शासन के तमाम प्रतीको पर हमले किए।
- उत्तरी और पश्चिमी बिहार और पूर्वी संयुक्त प्रांत,बंगाल में मिदनापुर, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा उड़ीसा के कुछ हिस्से आन्दोलन के प्रमुख केंद्र रहे, जिसमे बलिया, तामलुक, सतारा आदि स्थानों पर समानांतर सरकारों की स्थापना की गई, जो प्रायः दीर्घजीवी सिद्ध नहीं हुई।
सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज
- रास बिहारी बोस ने जापान मेँ इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। इसके बाद 11 सितंबर 1941 को उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना की।
- 18 फरवरी, 1942 को मोहन सिंह इस सेना के जनरल बनाये गए। जब सुभाष चंद्र बोस अप्रैल, 1943 मेँ पहुंचे तो जुलाई, 1943 को राज बिहारी बोस ने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग और आजाद हिंद फौज की अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया और सुभाष चंद्र बोस को इनका दायित्व सौंप दिया गया।
- सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर लौट गए वहां उन्होंने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार की स्थापना की तथा रंगून और सिंगापुर को मुख्यालय बनाया गया।
- 1945 मेँ जापान की युद्ध मेँ पराजय ने भारत को आजाद कराने की आशाओं पर पानी फेर दिया। फ़ौज के अधिकांश सेनिक बंदी बना लिया गए। जब इन सैनिकों को पर मुकदमे चलने लगे तो इन्हें जनता का भारी समर्थन मिला।
- जवाहरलाल नेहरु, तेज बहादुर सप्रू तथा भूलाभाई देसाई ने इन सैनिकों की पैरवी की। जनदबाव मेँ सरकार को झुकना पड़ा।
- सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली चलो का विख्यात नारा तथा अपने अनुयायियोँ को जय हिंद का मूल मंत्र दिया।
- द्वितीय विश्व युद्धोत्तर भारत मेँ लोगोँ की चेतना और राष्ट्रीय भावना का उद्वेलन करने मेँ आजाद हिंद फौज की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
- ब्रिटिश शासन राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करके भारत को स्वशासन के लक्ष्य की ओर अग्रसर करना चाहता है।
- वायसराय कार्यकारिणी परिषद का गठन इस तरह किया जाए कि, वायसराय तथा प्रधान सेनापति को छोडकर शेष सदस्य भारतीय हों।
- कार्यकारी परिषद मेँ हिंदू तथा मुसलमान सदस्योँ की संख्या बराबर होगी।
- विदेश विभाग भारतीय सदस्योँ के हाथ मेँ होगा।
- एक ब्रिटिश उच्चायुक्त की नियुक्ति की जाएगी, जो भारतीय वाणिज्य तथा दूसरे हितो की देखभाल करेगा।
- नई कार्यकारिणी परिषद 1935 के अधिनियम के तहत कार्य करेगी।
- भारत सचिव शक्ति को सीमित किया जाएगा, जबकी वायसराय के वीटो के अधिकार को बरकरार रखा जाएगा।
- वेवेल योजना और शिमला शिमला समझौता दोनो के विफल हो जाने के पश्चात भारत मेँ राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए कैबिनेट मिशन को भारत भेजा गया।
- इस शिष्टमंडल मेँ तीन सदस्य थे – पैथिक लॉरेंस, सर स्टेफोर्ड क्रिप्स और ए. वी. अलेक्जेंडर। यह शिष्टमंडल 24 मार्च, 1946 को दिल्ली पहुंचा।
- भारत के विभिन्न राजनीतिक दलो से लंबी बातचीत के बाद एक त्रिपक्षीय सम्मेलन, सरकार, कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच शिमला मेँ आयोजित किया गया।
- कैबिनेट मिशन ने इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि उसका उद्देश्य संविधान का निर्धारण करना नहीँ है, बल्कि उस तंत्र को सक्रिय बनाना है, जिसके द्वारा भारतीयों के लिए संविधान तय किया जा सके।
- कैबिनेट मिशन योजना का महत्व इस बात मेँ नहीँ था कि इसमें भारतीय एकता को सुरक्षित रखा गया था तथा पाकिस्तान की मांग को स्पष्ट रुप से अमान्य कर दिया गया था।
- जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व मेँ उनके 11 सहयोगियोँ के साथ 2 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया गया। इस मेँ मुस्लिम लीग के सदस्य शामिल नहीँ हुए।
- मुस्लिम लीग ने कांग्रेस लीग की समानता पर बल दिया। ऐसा न करने पर उसने कैबिनेट मिशन योजना को ठुकरा दिया।
- आरंभ मेँ मुस्लिम लीग सरकार मेँ शामिल नहीँ हुई थी, परन्तु वायसराय के प्रयासों से वह 26 अक्टूबर 1946 को सरकार मेँ शामिल हुई। सरकार मेँ उसके 5 सदस्य थे – लियाकत अली, गजनफ़र अली, चंद्रीगर, अब्दुल, खनश्तर, तथा योगेंद्र नाथ मांडल।
- कांग्रेस लीग टकराव संविधान सभा की बैठक मेँ लीग के भाग न लेने तथा उसके द्वारा चलाए जा रहे प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के परिणाम स्वरुप भारत मेँ दंगे विकराल रुप धारण करते जा रहै थे।
- राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री एटली ने 20 फरवरी, 1947 को घोषणा की, कि ब्रिटिश सरकार जून 1947 के पूर्व सत्ता भारतीयोँ को सौंप देगी।
- ब्रिटिश संसद मेँ यद्यपि इस घोषणा की काफी आलोचना हुई परंतु अंततः स्वीकृत हो गई।
- इसी घोषणा के साथ सत्ता का सफलतापूर्वक हस्तांतरण करने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन को भारत भेजा गया।
- मार्च 1947 मेँ लार्ड माउंटबेटन को भारत का वायसराय बनाकर भेजा गया।
- लार्ड माउंटबेटन ने भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के प्रश्न पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ बातचीत करके एक योजना तैयार की जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से जाना जाता है।
- माउंटबेटन द्वारा इस योजना की घोषणा 3 जून, 1947 को की गई, जिसमे हस्तांतरण की प्रक्रिया को सुगम बनाने तथा दोनों मुख्य संप्रदायोँ का समायोजन करने के लिए देश को दो भागोँ – भारत और पाकिस्तान मेँ विभाजित करने का परामर्श दिया गया।
- इस योजना के द्वारा यह निर्णय लिया गया कि 15 अगस्त, 1947 को भारत और पाकिस्तान को सत्ता का हस्तांतरण डोमिनियन स्टेटस के आधार पर कर दिया जाएगा।
- कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग सहित सभी दलो ने इस योजना को अपनी स्वीकृति दे दी। इसके उपरांत ब्रिटिश संसद मेँ किस योजना को कार्य रुप देने के लिए एक विधेयक पारित किया गया।
सत्ता का हस्तांतरण भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
- 15 अगस्त 1947 को दो स्वतंत्र अधिराज्यों भारत तथा पाकिस्तान की स्थापना की जाएगी।
- नए संविधान के बनने और लागू होने तक वर्तमान संविधान सभायें ही विधानसभाओं के रुप मेँ 1935 के एक्ट के तहत ही कार्य करेंगी।
- ब्रिटिश क्राउन का भारतीय रियासतों पर प्रभुत्व समाप्त हो जाएगा।
- भारत सचिव का पद समाप्त कर उसके स्थान पर एक राष्ट्रमंडलीय मामलोँ के सचिव की नियुक्ति करने की व्यवस्था की गई।
- दोनों राज्योँ के लिए राज्य मंत्रिमंडल के सुझाव पर पृथक गवर्नर जनरल की नियुक्ति की जाएगी।
- ग्रैंड ओल्ड मेन ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध दादा भाई नौरोजी तीन बार 1886 ई., 1893 ई., 1906 ई.) मेँ कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे।
- भारतीय क्रांति की माँ (मदर ऑफ इंडियन रेवोलुशन) के नाम से मैडम कामाजी प्रसिद्ध हैं, जबकि बाल गंगाधर तिलक को फादर ऑफ इंडियन अनरेस्ट अशांति का जनक कहा जाता है। ये बात है वैलेंटाइन शिरोल ने कही थी।
- 1932 के सांप्रदायिक पंचाट (कम्युनल अवार्ड) की घोषणा प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने की थी।
- व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान सबसे पहले गिरफ्तार होने वाले सत्याग्रही विनोबा भावे थे।
- जयप्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया एवं श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ने भूमिगत होकर भारत छोड़ो आंदोलन का संचालन किया था।
- 4 मार्च 1931 के गांधी इरविन समझौते मेँ महत्वपूर्ण भूमिका तेज बहादुर सप्रू, डॉ जयंकर व भोपाल के नवाब ने अदा की।
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