नोट्स कैसे बनाये -2
दोस्तों अपने नोट्स कैसे बनाये -1 पोस्ट में अपने पढा की कैसे नोट्स बनाने चाहिये और क्या सावधानिया बरतनी चाहिए ।
इसी को आगे बढ़ाते हुए आपको आज की पोस्ट में आपको और कुछ महत्वपूर्ण बिंदुयों पर चर्चा करते है
अगर आपने पिछली पोस्ट नही पढ़ी हो तो तुरंत पढ़िए नीचे दी गई लिंक द्वारा
https://ankitsharmaias.blogspot.com/2020/05/1.html?m=1
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2. सच तो यह है कि नोट्स बनाना केवल बिखरे हुए तथ्यों को एक जगह समेट देना भर नहीं होता है, बल्कि उससे बहुत कहीं आगे की बात भी होती है। अगर कोई सही में नोट्स बना रहा है, तो उसे यह मानकर चलना चाहिए कि बनाने के दौरान उसे एक जबर्दस्त वैचारिक उत्तेजना से गुजरना पड़ेगा। नोट्स बनाते समय हम केवल पढ़ते ही नहीं हैं, बल्कि पढ़ने के साथ-साथ उन पर विचार भी करते हैं। पहले तो हम अलग-अलग किताबों से पढ़ते हैं। पढ़ने के बाद उन पर विचार करते हैं कि इनमें से कौन सा तथ्य महत्वपूर्ण है, कौन सा तथ्य दूसरे में नहीं है। जो इसमें हैं, उन पर निशान लगाते हैं कि हमें यह सामग्री अपने नोटस् में ले जाना है।
मान लीजिए कि आप चार किताबों से पढ़ रहे हैं, तो चारों को पढ़ने के बाद आप मन ही मन उन चारों किताबों के बारे में एक साथ विचार करते हैं, ताकि वे घुल-मिलकर एक बन सकें और आपके दिमाग में एक स्ट्रक्चर, उसकी एक बुनावट तैयार हो सके। तब कहीं जाकर लिखने की शुरूआत की जाती है।
जब लिखने का दौर आता है, तब आपका मानसिक संकट और भी बढ़ जाता है। वे वैचारिक उत्तेजना के क्षण होते हैं और उस वैचारिक उत्तेजना मेंं ही हमें यह सोचना पड़ता है कि वह तथ्य किस किताब में है और यह तथ्य किस किताब में। वहाँ से ले-ले करके हम नोट्स बनाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि केवल पढ़ा ही नहीं जाता है, पढ़े हुए को केवल समेटा ही नहीं जाता है, बल्कि पढ़े हुए को मथा भी जाता है और मथने के बाद, जो अलग-अलग हंै, उन्हें एक जैसा बनाकर उतारा जाता है। सच पूछिए तो यह दौर बहुत दुखदायी होता है। यही कारण है कि ज्यादातर स्टूडेन्ट्स नोट्स बनाने से घबड़ाते हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें अगर बने बनाये नोट्स मिल जाएं, तो इससे बेहतर उनके लिए कुछ नहीं हो सकता। दुर्भाग्य से वे यह नहीं समझ पाते कि इससे कुछ भी बेहतर होने वाला नहीं है। हां, यह जरूर है कि जो तथ्यों का बिखराव था, वह आपको एक जगह पर सिमटा हुआ मिल जाएगा। लेकिन जो उससे वास्तविक फायदा होना चाहिए, वह फायदा आप नहीं उठा पायेंगे।
3. अलग-अलग किताबों से पढ़ने के बाद अब आपको लिखना होता है। जैसा कि मैं बता चूका हूँ, लिखने का यह दौर भी बहुत द्वन्द्वपूर्ण होता है। यह द्वन्द्व कई स्तरों पर होता है। कहाँ कौन-सी सामग्री है, इससे तो दिमाग को जूझना ही पड़ता है। साथ ही इस बात से भी जूझना पड़ता है कि उस सामग्री को यहाँ किस तरीके से लिखा जाये। इसके दो तरीके हो सकते हैं। या तो हम वहाँ की सामग्री को ज्यों का त्यों यहाँ टीप दें। यानी कि ज्यों का त्यों उतार दें। दूसरा तरीका यह हो सकता है कि वहाँ की सामग्री को समझकर फिर हम अपनी भाषा में लिखें। सही नोट्स वे होंगे, जो हम अपनी भाषा में लिखेंगे। यदि हम अलग-अलग किताबों से ज्यों का त्यों उतारेंगे, तो भाषा की जो एकरूपता है, वह खत्म हो जाएगी। हर लेखक की अपनी-अपनी भाषा होती है और यदि भाषा की एकरूपता खत्म हो गई, तो सामग्री में जो लयात्मकता होनी चाहिए, वह बाधित हो जाएगी। फिर पढ़ने का मजा कम हो जाएगा। और अगर पढ़ने का मजा कम हो गया, उसकी लयात्मकता कम हो गई, तो मानकर चलें कि दिमाग की ग्रहण-शक्ति भी उसी के अनुकूल कम हो जाएगी।
इसलिए बहुत जरूरी होता है कि हम पढ़े गये तथ्यों को अपनी भाषा में लिखें। यह इसका अगला बहुत बड़ा लाभ है। इससे हमारे दिमाग को भाषा के स्तर पर सोचने का अभ्यास पड़ता है। उसे अवसर मिलता है कि वह अपनी भाषा विकसित कर सके और फिर अपने विचारों को कापी के पन्ने पर उतार भी सके। कुल मिलाकर यह कि मजबूरी में ही सही, यहां एक बहुत अच्छा काम हो जाता है। अन्यथा सच पूछिये तो जब हम किसी भी परीक्षा की तैेयारी कर रहे होते हैं, तो लिखने का मौका आता ही नहीं, सिवाय परीक्षा हॉल में लिखने के। नोट्स हमें वह अवसर उपलब्ध करा देता है।
4. पता नहीं आपको लगता है या नहीं, लेकिन मुझे यह जरूर लगता है कि यदि मैंने अपने हाथ से नोट्स बनाये हैं, तो मुझे अपने उन नोटस् से एक भावनात्मक लगाव हो जाएगा। उससे एक अलग ही किस्म का जुड़ाव हो जाएगा। चूंकि उसमें मेरा श्रम शामिल है, इसलिए मुझे उससे कुछ अतिरिक्त मोहब्बत हो जाएगी। और मैं यह मानता हूं कि जिससे हमारा जुड़ाव हो जाता है, वह हमारे अधिक निकट आ जाता है। आप ऐसा बिल्कुल भी मत समझियेगा कि किसी नोट्स के साथ ऐसा कैसे हो सकता है। पत्थर के साथ हो जाता है, मिट्टी के साथ हो जाता है, पेड़ के साथ हो जाता है। और ये मिट्टी, ये पत्थर, ये पेड़ वे हैं, जिनके लिए हमने कुछ नहीं किया है। केवल यही कि हम उनके साथ रह रहे हैं, बस। लेकिन नोट्स के साथ तो हम जूझे हैं। इसमें तो हमारी रचनात्मकता शामिल है। इसके लिए हमने वक्त दिया है। तो ऐसे के साथ जुड़ जाना तो एक बहुत ही स्वाभाविक बात है। फिर सीधी-सी बात है कि यदि आप किसी से जुड़ जाते हैं, तो वह आपको अपना लगने लगता है और जब अपना लगने लगता है, तो उसकी दुरूहता, उसकी कठिनता, उसकी जटिलताएं सब गायब हो जाती हैं। वह चीज हमारे लिए आसान हो जाती है। नोट्स के साथ यह बहुत बड़ी बात होती है।
5. शायद आपका यह अनुभव रहा हो कि आपने किसी एक टॉपिक पर नोट्स तैयार किये थे। उसी टॉपिक पर परीक्षा में प्रश्न पूछ लिया गया है। अब, जबकि आप उस प्रश्न का उत्तर लिख रहे हैं, तो आप पायेंगे कि आपने जो नोट्स तैयार किये थे, उसके बिम्ब आपके दिमाग में उभरने लगे हैं। यहां तक कि जब आप अपने नोट्स के एक पूरे पृष्ठ को कापी में लिख चुके हैं, तो आपका दिमाग आपकी सुविधा के लिए धीरे से आपके नोट्स के पन्ने को पलट देता है और आप परीक्षा की कापी में उत्तर लिखना शुरू कर देते हैं। इससे उसी उत्तर को लिखने में अपेक्षाकृत कम समय लगता है। चूंकि आपके दिमाग की गति को आपके नोट्स ने सहारा देकर तेज कर दिया है, आप बहुत तेजी के साथ लिखेंगे, बशर्ते कि नोट्स से प्रश्न पूछ लिया गया हो।
6. नोट्स बनाते समय जब हमें लिखना पड़ता है, तो यह हमारा केवल वैचारिक अभ्यास ही नहीं होता, बल्कि साथ ही साथ हैंडराइटिंग का भी अभ्यास हो जाता है। हैडराइटिंग का यह अभ्यास दोनों स्तरों पर होता है-अक्षर सुन्दर बनें इस स्तर पर तथा हमारे लिखने की स्पीड तेज हो सके, इस स्तर पर भी। और सिविल सेवा परीक्षा में इन दोनों की अपनी-अपनी अहमियत है। यह ठीक है कि सुन्दर अक्षर उतनी बड़ी भूमिका नहीं निभाते। लेकिन स्पीड़ की तो बहुत बड़ी भूमिका होती है। आपको 180 मिनट में कम से कम चार हजार शब्द लिखने होते हैं, और वे भी 20 प्रश्नों के उत्तर देने के रूप में। यदि यहां आपकी स्पीड कम है, तो मानकर चलिए कि कुछ न कुछ प्रश्न छूट जायेंगे और प्रश्नों का यह छूटना आपके लिए बहुत घातक हो सकता है।
7. अंतिम बात यह कि क्या अब आपको नहीं लगता कि जब आप नोटस् बना रहे होते हैं, तो बनाने की उसी प्रक्रिया के दौरान आप एक प्रकार से उस विषय की, विषय के उन टॉपिक्स की तैयारी भी कर रहे होते हैं? इस बारे में मेरा जो भी थोड़ा सा अनुभव रहा है, उसके आधार पर मुझे यह कहने में कोई सकोच नहीं है कि नोट्स बनाने का मतलब है उस टॉपिक पर तैयारी का पूरा हो जाना, न केवल पूरा ही हो जाना, बल्कि बहुत अच्छी तरह पूरा हो जाना। इस प्रकार मुझे नोट्स बनाना एक प्रकार से तैयारी करने की लिखित पद्धति भी मालूम पड़ती है।
दोस्तो, यदि आप मेरी ऊपर की बातों से सहमत हैं, तो अब यह फैसला मैं आपके ऊपर छोड़ता हूं कि आपको नोट्स खुद के बनाने चाहिए या बने बनाये नोट्स खरीदने चाहिए। यह बात मैं इस रूप में कह रहा हूं, बशर्ते कि आपने यह फैसला कर लिया है कि आपको नोट्स की जरूरत है।
आप मुझे मेरे email id -instituteofankitsharma@gmail.com पर भी मेल करके अपने सुझाव दे सकते है|
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